रविवार, 27 मार्च 2011

नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।

इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।

एक चिंगारी कहीं से ढूँढ लाओ दोस्तों,
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।

एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी,
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।

एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।

निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी,
पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है।

दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,
और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है

- दुष्यंत कुमार की ग़ज़ल

15 टिप्‍पणियां:

  1. दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,
    और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है

    Dusyant kumar ki behtareen rachana padawane ke liye aap ko...Badhai

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  3. खँडहर बचे हुए हैं, इमारत नहीं रही
    अच्छा हुआ कि सर पे कोई छत नहीं रही

    कैसी मशालें ले के चले तीरगी में आप
    जो रोशनी थी वो भी सलामत नहीं रही

    हमने तमाम उम्र अकेले सफ़र किया
    हम पर किसी ख़ुदा की इनायत नहीं रही

    कुछ दोस्तों से वैसे मरासिम नहीं रहे
    कुछ दुश्मनों से वैसी अदावत नहीं रही

    हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग
    रो—रो के बात कहने की आदत नहीं रही

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  4. अपनी लेखनी को आगे बढाइये.
    कुछ नये लेख लिखिये.

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  5. एक चिंगारी कहीं से ढूँढ लाओ दोस्तों,
    इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।

    नेहा जी बहुत सुन्दर गजल आप की सुन्दर भाव अपने मन की बात लिखते रहिये और संकलन अच्छे संकलित करते रहिये
    सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

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  6. Neha ji Dushyant ji bahut shandar rachna prastut ki hai aapne .aabhar .

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  7. ye blog achchha laga par aaye aapka swagat hai .
    blog url is ''http://yeblogachchhalaga.blogspot.com''

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  8. एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी,
    आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।

    एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,
    यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।
    bahut sundar panktiyan ,neha ji aapke blog ka parichay ye blog achchha laga par mila bahut achchha laga yahan aana.badhai.please remove word veri fication settings>comment>verification

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  9. इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
    नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।
    wah.bahut achchi hai.

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  10. दुष्यंत कुमार की गजल जितनी बार भी पढी जाए, लगता है पहली बार पढ रहा हूं।

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